कविता : गर्भ में पल रहे बच्चे का माँ को एक प्रश्न

चिलचिलाती धूप में क्यूँ कुएँ से पानी भरती हो, 
क्यूँ चूल्हे के आगे बैठे आँच में रोटी सेकती हो।

डॉक्टर चाचा ने कहा था ना भार उठाना कोई, 
फिर जाने क्यूँ इतना काम तुम हर पल करती हो।



आऊँगा एक रोज़ जब तुम से बाहर, इस दुनिया में,
पूछूँगा तुमसे कि, क्यूँ माँ ... क्या प्यार नहीं था मुझसे कोई ? 

माँ बोलती है...

है पता मुझे सब कुछ, तुम जब रोते-हस्ते हो,
माँ हूँ तेरी फ़िक्र मुझे, क्यूँ घबराते तुम रहते हो। 

गर नहीं लाऊँगी कुएँ से पानी, ना सेकूँगी रोटी तो, 
कैसे मेरे भीतर तुम समझोगे दुनिया की रीती को।

भार उठाती हूँ हँसकर, क्यूँकि एक बात तुम्हें बतलानी है, 
 जीवन में संघर्ष बहुत है, पर तुम्हें हार नहीं माननी है । 

मेरी कलम से🖌- देवांशु।

Comments