अंग्रेज़ों की सिट्टी-पिट्टी गुम कर देनी वाली झाँसी की रानी के बारे में सबको मालूम है, पर क्या आप जानते हैं कि उन्हीं की सेना में एक और भी बहादुर महिला थी, जो बिलकुल रानी लक्ष्मी बाई से मिलती झुलती थी। ...... अरे वाह..... आप तो जान गाएं,.... जी हाँ हम इस हफ़्ते बात कर रहे हैं वीरांगना झलकारी बाई की ।
झलकारी बाई का जन्म 22 नवंबर 1830 में झाँसी में हुआ। वो झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई की नियमित सेना में, महिला शाखा दुर्गा दल की सेनापति भी थी।वे लक्ष्मीबाई की हमशक्ल थीं, इस कारण वो अंग्रेज़ो को धोखा देने के लिए रानी के वेश में भी युद्ध करने निकल जाती थी।
अंग्रेज़ों से लड़ते लड़ते झलकारी बाई की 4 अप्रैल 1857 को मृत्यु हो गयी।झलकारी बाई की वीरगाथा आज भी बुंदेलखंड की लोकगाथाओं और लोकगीतों में सुनाई जाती है।
आज वीरांगना झलकारी बाई की याद में देश में कई बड़े विद्यालय व विश्व विद्यालय , अस्पताल व स्मारक बनाए गये हैं। उनके नाम पर भारत सरकार ने डाक टिकट भी जारी किया है।
झलकारी बाई जी के नाम पर रायबरेली में भी एक ऐतिहासिक चौराहा बना है। इसे रायबरेली वाले सारस होटल चौराहा, मोटल चौराहा और गोल चौराहा के नाम से भी जानते हैं। इस चौराहे से लखनऊ, इलाहाबाद, प्रतापगढ़ और अमेठी जिलों में जाने वाले लोग अक्सर होकर गुज़रते हैं।
दोस्तों आप ख़ुद देखते होंगे कि आज यह चौराहा पहले जैसा बिलकुल भी नहीं दिखता है। कभी कभार जब बड़े राजनेताओं के क़ाफ़िले चौराहे की ओर होकर गुज़रते हैं, तो सबको वीरांगना झलकारी बाई की याद आती है। तभी चौराहे की प्रतिमा को धोकर पेंट किया जाता है और उस पर फूल चढ़ाए जाते हैं। या फिर कभी कभी 15 अगस्त या 26 जनवरी को यहाँ पर रौनक़ दिखती है। इसके अलावा यहां लगी प्रतिमा पर कभी ध्यान नहीं जाता। इस पर हम सभी को और ज़िला प्रशासन को ध्यान देने की ज़रूरत है।
खाने के शौक़ीन चौराहे के पास ही डोसा प्लाज़ा और डॉमिनोज़ पिज़्ज़ा जा सकते हैं। अभयदाता मंदिर , मालिकमऊ , आईटीआई और जायस जाने वाले इसी चौराहे से होकर जाते हैं।
तो.... अगली बार जब कभी भी आप इस चौराहे से होकर गुज़रे, तो यहाँ लगी वीरांगना झलकारी बाई की प्रतिमा के सामने एक बार ही सही अपने हाथ जोड़कर ज़रूर नमन करें। अच्छा लगेगा आपको...
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