भारत में नदियों पर संकट गहराता जा रहा है और यही कारण है की भारत की कई नदियों का अस्तित्व आज खतरे में है। उदाहरण के तौर पर उत्तराखंड में एक समय पर हज़ारों लोगों की प्यास बुझाने वाली रिस्पना नदी अब विलुप्त हो चुकी है। इसी तरह भारत में मुख्य नदियों से निकलने वाली सैकड़ों सहायक नदियाँ आज ग़ायब होने की कगार पर हैं।
ऐसी ही एक नदी रायबरेली में भी है, जो आज विलुप्त होने का ख़तरा झेल रही है… जी हाँ दोस्तों सही पहचाना आपने… हम बात कर रहे हैं, रायबरेली के साथ साथ कई पड़ोसी जिलों की जीवन दायनी सई नदी की।
ऐसी ही एक नदी रायबरेली में भी है, जो आज विलुप्त होने का ख़तरा झेल रही है… जी हाँ दोस्तों सही पहचाना आपने… हम बात कर रहे हैं, रायबरेली के साथ साथ कई पड़ोसी जिलों की जीवन दायनी सई नदी की।
सई नदी उत्तर भारत में बहने वाली एक नदी है। यह नदी उत्तर प्रदेश राज्य में बहती है और इसकी मुख्य नदी गोमती है। सई नदी का उद्गम हरदोई जनपद की भिजवान झील से हुआ है और इसकी लंबाई लगभग 715 किमी है। यह नदी हरदोई, उन्नाव, लखनऊ, रायबरेली, प्रतापगढ़ और जौनपुर जिलों से होकर गुजरती है।
सई की प्रमुख सहायक नदी बकुलाही नदी है , जो कि उत्तर प्रदेश के रायबरेली , प्रतापगढ़ व इलाहाबाद जिलों में बहती है। लोनी और सकरनी जैसी छोटी नदियाँ सई की सहायक धाराएँ हैं।
आज हरदोई, उन्नाव, रायबरेली व प्रतापगढ़ जिले की औद्योगिक इकाइयों का कचरा व रसायन नालों के माध्यम से सई नदी में गिराया जा रहा है। फैक्ट्रियों का कचरा नदी के पानी में जहर घोल रहा है। नदी का जल कत्थई, नीला व काला हो गया है। इस जहरीले पानी के कारण नदी में रहने वाली जैव परंपरा आज ख़ात्मे की ओर है। नदी में रहने वाली मछलियों की 70 फ़ीसदी आबादी आज ख़त्म हो चुकी है।
कहते हैं कि लंका पर विजय प्राप्त करने के बाद भगवान श्री राम ने अवध के जंगलों से वापस आते समय माता सीता और लक्ष्मण जी के साथ सई नदी में स्नान कर रावण से युद्ध में की गई गलतियों को याद किया था और सई के पवित्र जल का सेवन कर अपनी यात्रा आगे बढ़ाई थी। पुराणों में सई नदी की पवित्रता का ऐसा अनूठा उल्लेख देखने को मिलता है, लेकिन सई का वर्तमान किसी डरावने सच से कम नहीं है।
आप सई नदी को बचा सकते हैं, अपने ज़िलाधिकारी या दरवाज़े पर वोट माँगने आने वाले नेताओं से सई नदी का दर्द बताइए और ख़ुद इस नदी को बचाने की पहल करिए नदी के घाट पर जाकर।
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